कविता-आगे बढ़ने की चाह

आगे बढ़ने की चाह

कविता-आगे बढ़ने की चाह
आगे_बढ़ने_की_चाह

कविता

आगे बढ़ने की चाह

जीवन में आगे बढ़ने की चाह

किसे नहीं होती,

होनी भी चाहिए।

जिसमें आगे बढ़ने की

इच्छा-आकांक्षा नहीं होती,

उसका जीवन

नीरस, दिशाहीन और

नकारात्मक हो जाता है।

उसे हर पल

डर, दुःख और दुर्घटना ही दीखती है।

और, जब वह

दिन-रात नकरात्मकता से

ग्रसित रहता है तो

अवसाद, दुःख और दुर्घटनाएं ही

उसे घेर लेती हैं।

और, वह उसी में उलझा रहता है।

इस तरह के व्यक्ति

न तो खुद आगे बढ़ते हैं

और न ही

औरों को आगे बढ़ने के लिए

प्रेरित कर पाते हैं।

अब सवाल यह है कि

आगे बढ़ना किसे कहते हैं?

आगे बढ़ना....

मतलब हर समय

जीवन का लक्ष्य

निर्धारित कर

पूरे मनोयोग से

पूर्ण निष्ठा के साथ

लक्ष्य को प्राप्त करने की

ओर अग्रसर होना।

लक्ष्य क्या है?

समय-परिस्थिति में

अपने कर्तव्यों को

उत्तरोत्तर

अच्छे से अच्छा करने का

संकल्प ही लक्ष्य है।

लक्ष्य क्या होना चाहिए?

हमेशा हमारा लक्ष्य

समाज, देश, परिवार एवं स्वयं को

हर बिन्दु पर उत्कृष्टता एवं

कल्याण की ओर ले जाना।

लक्ष्य प्राप्त करने का माध्यम

क्या होना चाहिए?

न्यायोचित तरीके से

बिना किसी का हक़ मारे हुए

कड़ी मेहनत एवं बुद्धि का इस्तेमाल

आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी का

प्रयोग करते हुए

अपना लक्ष्य प्राप्त करना।

आगे बढ़ने की कोई सीमा भी तो

होनी चाहिए?

जीवन पर्यन्त

आगे बढ़ते रहना चाहिए।

उसकी कोई सीमा नहीं होती है।

काम करने के तरीके

बदल सकते हैं पर,

लक्ष्य एक वही

सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय।

जीवन में आगे बढ़ने का दर्शन क्या है?

आगे बढ़ते हुए

स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना,

ईष्र्या कदापि नहीं,

हमेशा बड़ी लाइन खींचना।

अपने पुरुषार्थ एवं क्षमता पर

भरोसा रखना।

कभी झूठ, फरेब और षड्यंत्र का

सहारा नहीं लेना।

बहुत अधिक आगे बढ़ने की चाह

आपको महत्वाकांक्षी, स्वार्थी और

खुदगर्ज़ बना देगीे?

नहीं.......ऐसा नहीं,

यदि आपका लक्ष्य पवित्र है।

आपका दिल साफ है और

आप सबका भला करना चाहते हैं।

किसी का हक़ नहीं मारना चाहते हैं।

यदि आप विनम्र हैं तो

यह ख़तरा आपको नहीं होगा।

हां, लगातार आगे बढ़ने की चाह

आपको हमेशा स्वस्थ, सचेत,

क्रियाशील और जवान रखेगी।

आप अंतिम समय तक जीवन्त रहेंगे और

लोगों को प्रेरित करते रहेंगे।

जीवन का फलसफ़ा क्या है?

हमेशा अच्छा सोचना,

अच्छा करना और

अच्छे से अच्छा करते रहना।

खुश रहना,

सबको खुश रखना।

सबको साथ लेकर चलना।

सबका भला करना।

अपने तक सीमित नहीं रहना।

सर्वव्यापी बनना और उपयोगी बनना।

गरीब एवं ज़रूरतमंद के काम आना।

हमेशा देने में विश्वास करना।

कम लेना, ज़्यादा देना।

यही जीवन का फलसफ़ा है।।

लेखक

डाॅ.अशोक कुमार गदिया

कुलाधिपति, मेवाड़ विश्ववविद्यालय

चित्तौड़गढ़, राजस्थान