भोर की रश्मियाँ

‘‘लक्ष्य वही, संकल्प वही, थकान बिल्कुल नहीं, निराशा का नामोनिशान नहीं, बस सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना, यही जीवन का असली मतलब है।’’ ‘‘आगे बढ़ते रहना चाहिए। उसकी कोई सीमा नहीं होती है। काम करने के तरीके बदल सकते हैं पर, लक्ष्य एक वही सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय।’’ ‘‘रोज़गारपरक शिक्षा देने का उपक्रम करें और, संस्कारवान, आत्मविश्वास से भरपूर, ज़िम्मेदार, देशभक्त समाज के प्रति संवेदनशील एवं उद्यमशीलता से परिपूर्ण, नौजवान तैयार कर समाज को देना सीखें।’’ ‘‘व्यक्ति से अध्यापक एवं अध्यापक से गुरु बनना एक सतत् प्रक्रिया है, बड़ा कँटीला एवं पिफसलन भरा मार्ग है, कुछ ही भाग्यशील पुण्य आत्माएँ इस पर चल पाती हैं, पर जो इस दुर्गम पथ पर चल जाते हैं, वे इस धरती पर साक्षात् ईश्वर का रूप बन जाते हैं।’’ डॉ. अशोक कुमार गदिया ‘‘आइये मिलकर इसे स्वीकार करते हैं। तैयार करते हैं- ऐसे कुछ नौजवान, जो ज़माने की चुनौतियों को स्वीकार करें और बनायें एक बेहतर और बेहतर सभी सुख-सुविधाओं से सम्पन्न भारत, जिसमें न कोई लाचार हो, न मजबूर हो, न ग़रीब हो, न अभावग्रस्त और प्रताड़ित हो। बस चारों ओर हो खुशहाली ही खुशहाली।’’

भोर की रश्मियाँ