बीमारियों की वजह- मानसिक असन्तुलन एवं अवसाद - उबरने के लिए उपाय
बीमारियों की वजह- मानसिक असन्तुलन एवं अवसाद - उबरने के लिए उपाय

जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक कई लोगों से वास्ता पड़ता है उनमें से सर्वप्रथम अपने माँ-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी, भाई-बहन, चाचा, ताऊ, मामा, मौसी, बुआ आदि जन्म के साथ ही आपके साथ जुड़ जाते हैं। उनका प्रभाव अपने जीवन पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रहता है। उनका प्यार, दुलार, डांट एवं सीख बचपन में अवश्य मिलती है। पर यह कोई आवश्यक नहीं कि आप उनके बताये रास्ते पर ही चलते रहें और आगे बढ़ें। अपने जीवन के निर्माण में और भी कई कारक होते हैं, जैसे आपके विद्यालय एवं महाविद्यालय के मित्र, अध्यापक वहाँ की पढ़ाई, ट्रेनिंग कार्यक्रम एवं अध्यापकों का मार्गदर्शन। इन सब कारकों से भी प्रभावित एवं उत्प्रेरित होकर आप अपने व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। स्वभाविक रूप से उपरोक्त सभी कारकों का, जिनकी वजह से आपके व्यक्तित्व का निर्माण हुआ, उनकी आपके प्रति कुछ अपेक्षाएं होती हैं। कुछ अरमान होते हैं, जो आपको ध्यान रखने होते हैं। एक सीधी-सच्ची बात है कि जिस किसी ने यदि आपके लिए कुछ भी समय लगाया है और उसका पारिश्रमिक उसे आपसे सीधा नहीं मिला तो समझो उसे आपसे कुछ अपेक्षा जरूर हो गयी है, वह प्रकट हुई या नहीं यह अलग बात है।
एक ऐसा समय आयेगा जब आपको उसकी कीमत किसी न किसी रूप में चुकानी होगी। यह पक्की और वास्तविक बात है। अब और आगे बढ़ते हैं। जब हम आत्म निर्भर हो जाते हैं तो हमारे जीवन में एक जीवनसाथी प्रविष्ट होता है, या होती है। उनकी सुख-सुविधा, सुरक्षा, भरण-पोषण एवं हर तरह की चिन्ता आपको करनी पड़ती है, उस सम्बन्ध से पैदा हुए बच्चे एवं रिश्तेदारी भी निभानी होती है। उनकी अपनी अपेक्षाएं होती हैं, जोकि बड़ी प्रबल होती हैं, जिसके पूरा होने में थोड़ी भी कसर रह जाए तो इसके विपरीत परिणाम तुरन्त नजर आते हैं।
अपने कार्यस्थल पर अपने कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिये भी आपको अपने सहयोगियों या वरिष्ठों की मदद लेनी पड़ती है। उनकी भी आपसे कुछ अपेक्षाएं होती हैं। उन्हें भी समय-समय पर पूरा करना होता है। वरना उसके दुष्परिणाम भी भयंकर होते हैं। इसके अलावा व्यक्ति आखिर इन्सान है, उसकी अपनी भी कोई रुचि, विचार एवं भावना होती है। जिसके लिये उसे समय लगाकर ऊर्जा अथवा संतुष्टि प्राप्त होती है। कुछ समय वह उन कामों में भी लगाना चाहता है। जब इन कारकों की अपेक्षाओं में टकराव होता है और थोड़ी असंतुलन की स्थिति बनती है तो उसका असर दिल एवं दिमाग पर पड़ता है। इसका परिणाम स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। यही सब आज के युग में सबसे अधिक हो रहा है। बड़ी चिन्ता का विषय है। मेरी समझ में कई बीमारियों की वजह, यह मानसिक असन्तुलन एवं अवसाद है, इससे उबरने के लिए उपाय खोजते हैं-
1 सबसे कम से कम अपेक्षा रखना
2 सबसे कम से कम मदद लेना
3 अपने लिए औरों की कम से कम अपेक्षा जगाना
4 अपने विचार, व्यवहार, दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन, पहनावा आदि पर अडिग रहना और दूसरों को देखकर कम से कम प्रभावित होना। उसे बदलना या बदलने की कोशिश नहीं करना।
5 कम से कम मित्र बनाना, जिन्हें बनाना उन्हें जिन्दगी भर निभाना।
6 झूठ नहीं बोलना, मिथ्या वार्तालाप नहीं करना एवं मृदु बोलना, परन्तु साफ बोलना।
7 वही काम हाथ में लेना, जिसे हम बखूबी पूरा कर सकें। ज्यादा बड़ा बनने की कोशिश नहीं करना।
8 चुप रहना, जितना जरूरी हो उतना ही बोलना। औरों के काम में हस्तक्षेप नहीं करना।
9 अधिक श्रेय लेने की चेष्टा न करना।
10 किसी को नीचा दिखाकर अपनी श्रेष्ठता साबित करने का प्रयास न करना। तुलना करने का अवसर दूसरों को देना।
11 भलाई, सहायता एवं सहयोग जीवन का अभिन्न अंग बनाने पर कोई अपेक्षा नहीं, कोई भेदभाव नहीं।
12 अपनी आवश्यकताएं जितनी सीमित कर सकं,े करना।
13 कोई किसी तरह का अहंकार न पालना।
14 कम से कम क्रोध में आना।
15 अनावश्यक विवाद एवं बहस में न पड़ना। किसी को बहस से जीतने के बजाय दिल से जीतने का प्रयास करना।
16 अपनों से कभी विवाद न करना बल्कि हर समय विवाद टालने का प्रयास करना।
17 आपस में प्रेम से रहना, कोई भी दुर्भावना मन में न रखना।
18 बनावटी प्यार, व्यवहार, पहनावा सबसे गलत है, इससे हमेशा बचना।
19 अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिये कम से कम आर्थिक सहयोग या उधार लेना, यदि बिल्कुल न लें, तो और अच्छा है।
20 खान-पान पर नियंत्रण रखना, जीने के लिये खाना है, खाने के लिये नहीं जीना है।
21 व्यसनो से जितना दूर रहें, उतना ही अच्छा है।
22 अति हर चीज की बुरी है। अतः सामंजस्य एवं सौहार्द्रपूर्ण जीवन सबके साथ मिल -जुलकर जीना।
- डॉ. अशोक कुमार गदिया
कुलाधिपति, मेवाड़ विश्वविद्यालय
गंगरार, चित्तौड़गढ, राजस्थान