कविता- जीवन का कटुसत्य
कविता- जीवन का कटुसत्य

कविता-
जीवन का कटुसत्य
जीवन का प्रथम एवं अंतिम सत्य है
जो आया है वह अवश्य जाएगा।
इसका सीधा अर्थ है कि
मौत से कोई नहीं बच पाएगा।
यह भी सत्य है कि
जिन सब चीज़ों के लिए
हम दिन-रात
पूरी जि़न्दगी प्रयास करते रहते हैं,
झूठ-सच करते हैं,
लोगों से लड़ते-झगड़ते हैं,
उनके कई बार हक़ भी मार देते हैं,
वह कुछ भी साथ नहीं जाएगा।
यह भी सत्य है कि
सांसारिक रिश्ते-नाते तथा
इनके आपसी सम्बंध,
प्यार, मोहब्बत, अहसान,
अधिकार, दायित्व एवं अपनापन
आपके अंतिम समय आने तक
बेमानी हो जाएंगे।
यह भी सत्य है कि
आपका अपना शरीर भी
एक सीमा के बाद
आपका अपना नहीं रह पाएगा।
यह भी सत्य है कि
आपकी संतान,
धन-दौलत एवं
सभी भौतिक संसाधन व सुविधाएं
एक समय पर
आपके लिए बेमानी होकर
आपको बोझ लगने लगेंगीं
और, जीवन शून्यता की ओर
बढ़ने के लिए अग्रसर हो जाएगा।
यदि ऐसा ही है तो
फिर क्यों ये सब मारामारी।
क्यों झूठ, आडम्बर, दिखावा,
घमंड, स्वार्थ-साधना,
मोह-माया एवं लालच।
साथ क्या जाएगा?
धार्मिक शास्त्र,
सामाजिकता, साहित्य,
बुज़ुर्गों एवं ज्ञानियों की
यही सीख है कि
आपका कर्म आपके साथ जाएगा।
कर्म एक दिन में नहीं होता।
यह तो निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
आप जैसे रहोगे,
जैसा बोलोगे, जैसा विचार-व्यवहार
घर-समाज में करोगे
आपका वैसा आचरण होगा।
उसी से आपका कर्म निर्धारित होगा
और वही आपके साथ जाएगा।
इसीलिए कहा गया है कि
आप अच्छे कर्म करोगे
तो आपके साथ अच्छाई जाएगी
और बुरे कर्म करोगे
तो आपके साथ बुराई जाएगी।
यह आप पर निर्भर करता है कि
आप साथ क्या ले जाना चाहते हो,
कांटे या फूल?
यदि आप ले गए
झूठ, फरेब, दुराचार, अनाचार,
घृणा, कड़वाहट, ईष्र्या, पक्षपात
तो समझो आप अपने साथ कांटे ले गए।
यदि आप ले गए सदाचार, प्रेम,
सत्य, न्याय, भलाई, करूणा,
सदाशयता, सहकारिता,
संवेदनशीलता,
तो समझो आप
अपने साथ फूल ले गए।
इसलिए
हे ईश्वर के बंदे!
जीवन में अपने कर्तव्यों का निर्वाह
स्वच्छ मन से कर।
तेरा सिर्फ इसी पर अधिकार है।
अच्छे एवं बुरे फलों को ध्यान में रखकर
अपने व्यवहार एवं कार्य पद्धति को
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं झूठ से
दूषित न कर
परिणाम कुछ भी हो, वह अच्छा ही होगा
और वही साथ जाएगा।
पारिवारिक जीवन में हर रिश्ते को
निःस्वार्थ भाव से
ईमानदारी से
अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए
निभाओ,
कोई जैसे को तैसा का भाव नहीं,
कोई बोझ नहीं,
कोई मोह नहीं,
कोई अपेक्षा नहीं,
आचरण की पवित्रता
एवं सम्बंधों में मधुरता
ही साथ जाएगी।
सामाजिक जीवन में
हर कार्य समाज के
अंतिम पड़ाव तक बैठे
लोगों को ध्यान में रखकर
अपना काम करो।
जितना लोगों का
भला कर सकते हो, करो।
कोई भी अपेक्षा न करो।
अपना सम्पूर्ण जीवन
उनकी भलाई में लगा दो।
यह भलाई ही साथ जाएगी।
इसीलिये ठीक ही कहा है कि
‘कबिरा जब पैदा हुए, जग हंसे, हम रोये।
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोये।।’
- डाॅ. अशोक कुमार गदिया
कुलाधिपति
मेवाड़ विश्वविद्यालय
गंगरार, चित्तौड़गढ़
राजस्थान