कविता_जीवन_में_भरोसे_का_संकट

जीवन_में_भरोसे_का_संकट

कविता_जीवन_में_भरोसे_का_संकट
जीवन_में_भरोसे_का_संकट

कविता
जीवन में भरोसे का संकट
ज़माना सिखाता है, कि
किसी पर भी भरोसा न करो।
क्योंकि सर्वत्र धोखा है।
मन कहता है, कि
जबतक यह खुद जांच न लो, कि
अमुक व्यक्ति धोखेबाज़ है,
उसपर भरोसा करो।
क्योंकि सिर्फ अफवाह या
माहौल पर आप
किसी व्यक्ति का
चरित्र निर्धारण कैसे कर सकते हैं।
हर सामने वाले व्यक्ति को
चोर उचक्का एवं धोखेबाज़
मानकर व्यवहार करना
कहां तक की इंसानियत है।
क्या ऐसा करना अपने आपको
डरपोक, शक्की एवं आपके दायरे को
सीमित नहीं करता।
कोई व्यक्ति आपके साथ झूठ बोलकर
धोखा कर, कुछ फायदा उठाता है, तो
यक़ीन मानिये वह आपका
अल्पकालीन नुकसान कर,
अपना दीर्घकालीन नुकसान कर रहा है।
अपनों द्वारा दिये गये धोखे एवं नुकसान पर
ज़्यादा अफसोस नहीं करना चाहिये,
बल्कि सीख लेनी चाहिये।
जीवन में हर वह काम
कभी नहीं करना चाहिये,
जो आपको ग़लत लगता हो।
भावना पर नियंत्रण एवं समझ का उपयोग
जीवन में कम से कम धोखा देगा।
फिर भी कुछ होता है, तो
जीवन की नियति मानकर
उसे सहन करना होगा।
यदि सर्वत्र
झूठ, धोखा, छल, कपट होगा वातावरण में, तो
आप भी इससे कबतक बच पाएंगे।
फिर इससे प्रभावित होकर इतना दुख क्यों,
स्वार्थ व लालच पर लगाम लगा।
जो हुआ उसे भूल और आगे की सुध ले।
अपने आप पर विश्वास कर,
नेक इरादे रख।
किसी का बुरा मत सोच।
न बुरा कर, लम्बी सोच रख, सच्चाई पर चल।
ईश्वर तेरा साथ देगा।
कठिनाइयों के बादल छंटेंगे।
आसमान साफ होगा, निर्मल होगा,
आगे बढ़ने के रास्ते प्रशस्त करेगा,
अंतिम विजय तुम्हारी ही होगी।
यह तो तय मान कि
समाज में उपलब्ध लोगों से ही
काम लेकर आगे बढ़ना होगा।
उनकी क्षमता, सहनशीलता, ईमानदारी एवं
वफादारी को जांचना-परखना तेरा काम है।
इसे ठंडे दिमाग़ से बिना विचलित हुए किये जा।
कभी ग़लती होगी,
उसे नज़र अंदाज़ कर आगे बढ़।
रुकना सड़ांध पैदा करना है।
चलना फूल खिलाना है।
बस चलते जाओ, चलते जाओ, सबको साथ लेकर,
जिसकी जितनी क्षमता होगी, वह उतना चलेगा।
बाक़ी छूट जाएगा।
छूटने का अफसोस नहीं,
साथ चलने वालों का स्वागत और
आगे बढ़ने की अभिलाषा
यही है जीवन का लक्ष्य।।
लेखक
- डाॅ. अशोक कुमार गदिया
कुलाधिपति
मेवाड़ विश्वविद्यालय
गंगरार, चित्तौड़गढ़
राजस्थान